चालाक बिल्ली की कहानी | पंचतंत्र की कहानी

रामपुर गांव में करीब 90 साल की एक बुढ़िया रहती थी जिसको ज्यादा उम्र होने के कारण ठीक से दिखाई नहीं देता था। उसने मुर्गियां पाल रखी थी और उन्हें चराने के लिए एक लड़की भी रखी थी। एक दिन अचानक वह लड़की नौकरी छोड़कर कहीं भाग गई। बेचारी बढ़िया सुबह मुर्गियों को चराने के लिए खोलती तो सारी की सारी पंख फड़फड़ाते हुए घर की चारदिवारी को नांघ जाती थी और पूरे मोहल्ले में कोको कुरकुर करके शोर मचाती थी।

कभी-कभी तो पड़ोसियों के घर में घुस कर सब्जियां खा जाती थी या फिर कभी पड़ोसी उनकी सब्जी बनाकर खा जाया करते थे। दोनों ही हालातों में बैठ नुकसान बेचारी बुढ़िया का ही होता था जिसकी सब्जियां खाती वो बुढ़िया को आकर भला बुरा कहता था और जिसके घर में मुर्गियां पकती उससे बुढ़िया की हमेशा के लिए दुश्मनी हो जाती हैं

थक हार कर बुढ़िया ने सोचा कि बिना नौकर के इन मुर्गियों को पालना मुझ जैसी कमजोर बुढ़िया के बस की बात नहीं है, कहां तक मैं इन मुर्गियों को हांकती रहूंगी। जरा सा काम करने से ही मेरा दम फूलने लगता है। यह सोचते हुए बूढ़िया डंडा टेकती नौकर की तलाश में निकल पड़ी। पहले तो उन्होंने अपनी पुरानी, मुर्गियां चराने वाली लड़की को ढूंढा परंतु उसका कहीं कुछ पता नहीं चला, उसके मां-बाप को भी अपनी लड़की के बारे में नहीं पता था कि वह कहां गई हैं ।

कुछ देर बाद रास्ते में उसे एक भालू मिला भालू बुढ़िया को नमस्कार करते हुए कहा आज सुबह-सुबह कहां जा रही हैं आप, सुना है आपकी मुर्गियां चलाने वाली लड़की भाग गई है कहिए तो मैं उसकी जगह नौकरी कर लूं खूब देखभाल करूंगा आपकी मुर्गियों की। बुढ़िया बोली अरे हटो! तुम इतने मोटे और बदसूरत हो तुम्हें देख कर ही मेरी मुर्गियां डर जाएंगी, ऊपर से तुम्हारी आवाज भी इतनी बेसुरी है कि उसे सुनकर वो दरबे से बाहर ही नहीं आएंगी, मुर्गियों के कारण मोहल्ले में ऐसे ही मेरी सब से दुश्मनी है और तुम जैसा जंगली जानवर को रख लूंगी तो मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा। छोड़ो मेरा रास्ता मैं खुद ही ढूंढ लूंगी अपने लिए नौकर”।

इतना ही कह कर बुढ़िया आगे बढ़ गई। थोड़ी देर बाद बुढ़िया को एक सियार मिला और बोला “राम राम बुढ़िया नानी! किसे ढूंढ रही हो आप?? बुढ़िया बोली मैं अपने लिए एक नौकरानी ढूंढ रही हूं जो मेरे मुर्गियों की देखभाल कर सकें, मेरी पुरानी वाली नौकरानी इतनी दुष्ट निकली कि वह बिना बताए ही कहीं भाग गई अब मैं अपनी मुर्गियों की देखभाल भला कैसे करूं, क्या तुम किसी ऐसी लड़की को जानते हो जिसे सौ तक की गिनती आती हो क्योंकि मेरे पास सौ मुर्गियां हैं जिनको गिनकर दरबे में रख सके।

यह सुनकर सियार बोला” बुढ़िया नानी यह कौन सी बड़ी बात है चलो अभी मैं तुम्हें एक लड़की से मिलाता हूं जो मेरे पड़ोस में ही रहती है वह रोज जंगल के स्कूल में जाती है उसे सौ तक तो गिनती आती ही होगी, आओ मैं तुम्हें उससे मिलाता हूं सियार भाग कर गया और अपने पड़ोस में रहने वाली पूसी बिल्ली को बुलाकर ले आया। बिल्ली को देख कर बुढ़िया बोली “हे भगवान! क्या जानवर भी कभी घर के नौकर हो सकते हैं जो अपना काम ठीक से नहीं कर सकते वह मेरा काम क्या करेंगी लेकिन पूसी बिल्ली बहुत ही चालाक थी आवाज को मीठा बनाकर बोली बुढ़िया नानी आप बिल्कुल परेशान ना हो कोई खाना बनाना पकाने का काम तो है नहीं जो कर ना सकू, मुर्गियों की देखभाल करनी है ना, वह तो मैं बहुत अच्छे से कर लेती हूं। मेरी मां ने भी मुर्गियां पाल रखी है मैं उनकी देखभाल करती हूं और गिनकर दरबे में रखती हूं। बुढ़िया दादी ने उसकी बात सुनकर उसको नौकरी पर रख लिया।

पूसी बिल्ली ने पहले ही दिन मुर्गियों को दरबे से निकाला और खूब भागदौड़ की जिसे देख कर बुढ़िया दादी संतुष्ट हो हुई और सोने के लिए चली गई। पूसी बिल्ली ने मौका देखकर पहले ही दिन 6 मुर्गियाँ मारकर खा गई। बुढ़िया जब शाम को जगी तो उन्हें बिल्ली के इस हरकत के बारे में कुछ पता नहीं था एक तो उन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता था और फिर भला इतनी चालाक बिल्ली की शरारत को कहां समझ पाती। पड़ोसियों से अब बुढ़िया की लड़ाई नहीं होती थी क्योकि मुर्गियां उनकी सब्जियां नहीं खाती थी धीरे-धीरे बुढ़िया को पुसी बिल्ली पर इतना भरोसा हो गया कि उसने दरबे की तरफ जाना ही छोड़ दिया।

एक दिन ऐसा आया जब दरबे में सिर्फ 25 मुर्गियां बची उसी समय बुड़िया भी टहलते हुए वहां आ गई इतनी कम मुर्गियों को देख कर बुढ़िया ने तुरंत बिल्ली से पूछा “क्योंरि और मुर्गियों को तुमने कहा चरने के लिए भेजा है” पुसी बिल्ली ने जवाब दिया सब पहाड़ पर चली गई हैं मैं कितना बुलाती हूं पर वह आती ही नहीं बहुत शरारती हो गई है।” अभी जाकर देखती हूँ कि ये इतनी ढीठ कैसे हो गयी हैं? पहाड़ के ऊपर खुले में घूम रही हैं। कहीं कोई शेर या भेड़िया आ ले गया तो बस!” बुढ़िया बड़बड़ाती हुई पहाड़ पर चढ़ गई वहां सिर्फ मुर्गियों की हड्डियां और उनके पंख पड़े हुए थे उसे देखकर बुढ़िया पूसी बिल्ली की सारी करतूत समझ गई, वह तेजी से घर की ओर लौटी।

इधर पूसी बिल्ली ने छोड़ सोचा बुढ़िया को आने में अभी वक्त लगेगा क्यों ना बची हुई मुर्गियों को भी खा लिया जाए। वह उन्हें मारकर खाने जा ही रही थी कि तभी बुढ़िया लौट कर आ गई, यह सब कुछ देख कर बुढ़िया आग बबूला हो गई। उसने पास पड़ी कोयलों की टोकरी उठा कर पूसी के सिर पर दे मारी। पूसी बिल्ली को चोट तो लगी ही, उसका चमकीला सफेद रंग भी काला हो गया। अपनी बदसूरती को देखकर वह रोने लगी।

दोस्तों हमें लालच नहीं करना चाहिए लालच का फल बहुत ही बुरा होता है, हमारे पास जितना भी जो कुछ भी है हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।

चालाक बिल्ली की कहानी | पंचतंत्र की कहानी


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