लम्पी स्किन रोग पर नियंत्रण के लिए पशुपालक इन बातों का ध्यान रखे

उपसंचालक पशु चिकित्सा सेवायें हरदा डॉ. एस.के. त्रिपाठी ने लम्पी स्किन रोग के नियंत्रण के लिये पशुपालकों के लिये सलाह जारी की है। उन्होने बताया कि लम्पी स्किन रोग अथवा गांठदार त्वचा रोग गौंवंशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं का एक संक्रामक रोग है जो केप्री पॉक्स विषाणु के कारण होता है।

लम्पी स्किन रोग की आम जानकारी

यह रोग पशुओं से इंसानों में नहीं होता है। यह रोग रोगी पशु से अन्य स्वस्थ पशुओं में रक्त चूसने वाले अथवा काटने वाले कीटों, जैसे मच्छर, काटने वाली मक्खी, जूं, चींचड़े एवं मक्खियों आदि से फैलता है। यह रोगी पशु के सम्पर्क से, लार से, गांठों में मवाद अथवा जख्म से, संक्रमित चारे अथवा पानी से भी स्वस्थ पशु में फैल सकता है।

रोगी पशुओं तथा इनके सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के आवागमन से भी रोग के फैलने की संभावना होती है।रोग से कैसे करें बचावगौंवशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं के इस संक्रामक रोग के नियंत्रण एवं रोकथाम का सर्वोत्तम उपाय, स्वस्थ पशुओं को संक्रमण की चपेट में आने से बचाना है।

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रोग की रोकथाम के लिये क्या करे

रोग की रोकथाम के लिये पशु पालकों को सलाह दी गई है कि पशुओं के बाड़े में मच्छर, काटने वाली मक्खी, जूं, चींचड़े एवं मक्खियों आदि रोगवाहकों का नियंत्रण करें, पशुओं के बाह्य परजीवियों की रोकथाम के लिये पशु चिकित्सक की सलाह पर

  • परजीवी नाशक दवाओं का उपयोग करें,
  • पशु आवास एवं उसके आसपास साफ-सफाई एवं स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।
  • पशु आवास के नजदीक पानी, मल-मूत्र एवं गंदगी एकत्र नहीं होने दें।
  • पशु बाड़े में अनावश्यक व्यक्तियों, वाहनों आदि का आवागमन नहीं होने दें।
  • किसी भी पशु में रोग के आरंभिक लक्षण दिखाई देते ही उसे अन्य स्वस्थ पशुओं से तुरन्त अलग कर दें।
  • पशुओं को यथासंभव घर पर ही बांध कर रखें तथा अनावश्यक रूप से उसे बाहर नहीं छोड़ें।
  • पशुओं को चराई के लिये चारागाह या बाहर ना छोड़ें।
  • रोग ग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं का आवागमन नहीं करें।
  • रोग से संक्रमित पशुओं की देखभाल करते समय सभी आवश्यक जैव सुरक्षा उपायों, साबुन एवं सैनिटाईजर का भी नियमित उपयोग करें, जिससे हम रोगी पशुओं से स्वस्थ पशुओं तक रोगवाहक नहीं बनें।

उन्होने सलाह दी है कि रोगी गाय के दूध का उपयोग कम से कम दो मिनिट उबालने के बाद ही किया जाए। उपसंचालक पशु चिकित्सा ने बताया कि इस रोग से मृत पशुओं को खुले में न फेंका जाए बल्कि डेढ़ मीटर गहरे गड्ढे में चूना और नमक डालकर गाढ़ दिया जाए।

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